समूचे विश्व में बौद्ध धर्म के संस्थापक ,प्रचारक और प्रसारक गौतम बुद्ध आज तक महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्म गुरु और ऊंची कोटी के समाज सुधारक माने जाते हैं। आज भी समूची विश्व की आबादी के 25% लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। चीन, जापान, व्हिएतनाम, थायलैंड, मंगोलिया, कंबोडिया, श्रीलंका, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, म्यानमार, तैवान, भूटान, हाँगकाँग, तिब्बत, मकाउ और सिंगापुर मिलकर कुल 18 देश पूर्णतया बौद्ध देश कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त भारत, मलेशिया, नेपाल, इंडोनेशिया, अमेरिका , औस्ट्रेलिया, ब्रुनेई आदी देशों में भी बौद्धधर्म के अनुयायियों की संख्या कम नहीं है।
जन्म काल:
गौतम गोत्र में जन्मे इस बालक का नाम माता-पिता ने प्यार से सिद्धार्थ रखा था। उस समय कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने पीहर देवदाह जा रहीं थी और रास्ते में लुम्बिनी वन (नेपाल) पड़ा जहां प्रसूता महामाया ने बालक सिद्धार्थ को जन्म दिया। इस प्रकार क्षत्रिय राजा शुद्धोधन के घर ईसा पूर्व 563 ईस्वी में राजकुमार का जन्म हुआ। जन्म के साथ दिन के अंदर बालक सिद्धार्थ की माता का निधन होने के कारण महारानी की छोटी बहन ने इनका लालन पालन किया। जन्म के पांचवे दिन राजा शुद्धोधन के द्वारा एक भोज आयोजित किया गया जिसमें सभी ब्राह्मणों ने एकमत से घोषणा करी की या तो यह बालक महान राजा बनेगा या फिर एक महान पथ प्रदर्शक बनेगा।
शिक्षा एवं विवाह:
गुरु विश्वामित्र के शिष्य के रूप में बालक सिद्धार्थ ने वेद और उपनिषद की शिक्षा ग्रहण करते हुए राजकार्यों और युद्ध कौशल का ज्ञान भी प्राप्त किया । अपने हर कला और कौशल में अद्वितीय होते हुए उनका 16 वर्ष की अवस्था में कोली कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ और इसके साथ उन्होनें अपना ग्रहस्थ जीवन आरंभ किया। एक वर्ष बाद एक पुत्र राहुल का जन्म हुआ। इस पूरी अवधि में उनके पिता से उनसे दुख, शोक और विरक्ति को प्रदर्शित करने वाले हर दृश्य को दूर रखा। लेकिन विधिनुसार 29 वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ ने दुख, शोक, जरा और मृत्यु की अवस्था का अनुभव किया ।
विरक्ति और सत्य की खोज:
बुढ़ापा, बीमारी, अर्थी को देखकर राजकुमार विचलित हो गया और एक दिन मार्ग में एक सन्यासी को देखकर उसकी ओर आकर्षित हो कर उन्होनें राजपाट त्याग कर सन्यास का पथ अपना लिया। अपनी सबसे पहले भिक्षा राजगृह से लेकर सत्य की खोज में सिद्धार्थ सन्यास के मार्ग पर चल पड़ा । उन्होनें दो ब्राह्मणों की संगत में अपने प्रश्नों का उत्तर ढूँढने का प्रयास किया लेकिन उसमें वो असफल रहे। इसी बीच में उन्होनें समाधि लगाना और योग साधना सीख ली। इसी बीच उन्हें यह एहसास हुआ की अपने शरीर को कष्ट देकर ईश्वर की साधना करना गलत है। तब उन्होनें एक ब्राह्मणी से खीर लेकर खाई और एक वृक्ष के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए। बाद में यह वृक्ष बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है।
ज्ञान प्राप्ति :
उन्होनें मध्यम मार्ग खोज लिया जिसके अनुसार तपस्या और असंयम के बीच का मार्ग ही उत्तम है। इस प्रकार 35 वर्ष की अवस्था में वे बुद्ध बन गए। उनका सबसे पहला धर्मोपदेश सारनाथ, वाराणसी में था। इसके बाद उन्होनें अपने अनुयायियों को बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए भेज दिया । उन्होनें उस वक्त की प्रचलित भाषा पाली में ज्ञान का प्रसार किया।
महानिर्वाण:
गौतम बुद्ध ने 80 वर्ष की आयु में यानि 483 ईसा पूर्व में निर्वाण की प्राप्ति की।