खिलजी वंश – एक परिचय

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इतिहास के तथ्यों की जानकारी पूरी न होने के कारण अधिकतर लोग अलाउद्दीन खिलजी को एक विलासी और आक्रमांकारी के रूप में ही जानते हैं। लेकिन वास्तव में अलाउद्दीन खिलजी के वंश और साम्राज्य का विवरण, और उनके शासन काल से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में भारतीय इतिहास के शोधकर्ताओं के अलावा और कोई नहीं जानता है। खिलजी वंश कहाँ से आया ये कहना मुश्किल है क्योंकि कुछ इतिहासकार इन्हे अफ़ग़ानिस्तान का तो कुछ इन्हे तुर्क मानते हैं ।

खिलजी वंश कहाँ से आया था :  

खिलजी वंश कहाँ से आया, इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद पाया जाता है। कुछ विद्वान इन्हें तुर्क मानते हैं तो कुछ के मतानुसार ये अफगानिस्तान के खिलज क्षेत्र से आए थे। दिल्ली में गुलाम वंश के अंतिम शासक शंसुद्दीन क्यूमर्श की हत्या करके जालूद्दीन खिलजी ने 1290 में खिलजी वंश (khilji vansh) की स्थापना करी थी।

खिलजी साम्राज्य का इतिहास (History of Khilji Dynasty)

दिल्ली में यह दूसरा मुगल परिवार था जिसने बीस वर्ष तक शासन किया था। इस वंश ने निम्न समयावधि में शासन किया :

जलालुद्दीन ख़िलजी – (1290-1296 ई.)

अलाउद्दीन ख़िलजी – (1296-1316 ई.)

शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी – (1316)

क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी – (1316-1320 ई.)

नाइसीरुद्दीन खुसरशवाह (1320)

खिलजी सममारज्य में विशेष क्या था :

जलालुद्दीन ख़िलजी – (1290-1296 ई.)

भारत में Khilji Dynasty की स्थापना जलालूद्दीन ने करी थी। उन्होने 70 वर्ष की उम्र में दिल्ली की बादशाहत संभाली थी, और मंगोलो के आक्रमण से अपने साम्राज्य को बचाने के लिए, उनसे संधि करके उन्हें दिल्ली के एक क्षेत्र में बसा लिया। यह क्षेत्र आज भी मंगोलपुरी के नाम से जाना जाता है। जलालूद्दीन युद्ध को खराब मानते थे और शासन को सुदृढ़ करने के लिए प्रजा को अपने पक्ष में करने पर बल दिया।

अलाउद्दीन ख़िलजी – (1296-1316 ई.)

खिलजी वंश का यह स्वर्णिम काल माना जाता है। स्वयम को दूसरा सिकंदर घोषित करने वाला विश्व विजेता बनने का स्वप्न देखता था। इसके लिए उसने पहले भारत को जीतने का प्रयत्न किया और कुछ हद तक सफल भी हुआ। अलाउद्दीन के शासन काल में ही सबसे पहले दक्षिण भारत तक भारत को जीत कर गोलकुंडा का प्रसिद्ध हीरा कोहेनूर प्राप्त किया। एक कुशल शासक के रूप में इसने समाज के ऊंचे तबके पर नकेल कसनी शुरू करी। इस क्रम में सबसे पहले दान और पुरस्कार में दी गई ज़मीन वापस लेना, अमीरों के आपसी मेल बढ़ाने वाले समारोहों को बंद करना , खुले में मदिरापन और जुआ खेलना बंद करना आदि काम किए। इसके अलावा गुप्तचर विभाग को संगठित और सुदृढ़ किया। सैन्य संपत्ति में बढ़ावा करते हुए डाक व्यवस्था का आराम्भ किया। इसके अलावा राज्य के हित में निर्णय लेते हुए खलीफा के हितों को अनदेखा कर दिया। भू-राजस्व सुधार और बाज़ार नियंत्रण व्यवस्था पर पकड़ मजबूत करते हुए एक अच्छे प्रशासक होने का सबूत दिया।

जलालूद्दीन के विपरीत, अलाउद्दीन ने लगभग पूरा पश्चमी और काफी हद तक दक्षिणी भारत को युद्ध में जीत लिए था। इसी क्रम में चित्तौड़ का युद्ध और पद्मावती का जौहर भारतीय समाज में जाना माना जाता है। लगतार युद्ध करते हुए अपने जीवन के अंतिम समय में बीमारी की अवस्था में 1316 में उसकी मृत्यु हो गई।

शिहाबुद्दीन उमर ख़िलजी – (1316)

अलाउद्दीन ने अपने सलाहकार मालिक काफ़ूर के कहने पर 5 वर्षीय पुत्र शिहबुड्डीन को उत्तराधिकारी बना दिया। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद शिहबुड्डीन की आड़ में मालिक काफ़ूर ने शासन करने का प्रयत्न किया। ठीक 35 दिन बाद अलाउद्दीन के तीसरे पुत्र मुबारक  ने मालिक काफ़ूर की हत्या करके शिहाबुड्डीन को गद्दी से हटा कर स्वयम बैठ गया।

क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी – (1316-1320 ई.)

अपने पिता की भांति मुबारक खिलजीने भी प्रशासन को सुरदृढ़ करने के काम किए और सेना को मजबूत करते हुए देवगिरि और गुजरात जैसे राज्यों पर विजय प्राप्त करी। इस जीत ने मुबारक को विलासी बना दिया और इसी का लाभ उठाते हुए उसके प्रधानमंत्री ने उसकी हत्या कर दी।

नाइसीरुद्दीन खुसरशवाह (1320)

12 दिन तक राज्य का भोग करते हुए उसकी हत्या कर दी गयी और इसी के साथ खिलजी वंश का अंत हो गया ।

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