एक साधारण व्यापारिक कंपनी से कैसे पूर्वी एशिया पर अपना आधिपत्य जमा कर ब्रिटिश राज्य के विस्तार में मदद करी, ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास में यह स्पष्ट लक्षित होता है।
साधारण अनुबंध के परिणाम से अस्तित्व में आई यह व्यापारिक कंपनी विभिन्न देशों की भाग्यविधाता कैसे बन गई, आइये देखें:
कंपनी का जन्म क्यूँ हुआ:
ब्रिटेन की महारानी एलीज़ाबेथ ने एक घोषणापत्र में मंजूरी देते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना वर्ष 1600 में करी थी। लेकिन इंग्लैंड की 1688 की क्रान्ति के बाद राजतंत्र और कुछ धनाद्य वर्ग भ्रष्टाचार में डूबी इस कंपनी का सितारा बुलंदी पर चढ़ा दिया था। इस कंपनी की स्थापना का उद्देशय एशिया के सभी देशों के साथ मसालों का व्यापार करना था। बाद में इस क्षेत्र में विस्तार करके अफीम, रेशम, चाय, कपड़ा और नील भी शामिल कर दिया गया।
कंपनी की बनावट:
ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण निदेशक मण्डल के हाथों में था जो 24 व्यक्तियों रूपी समितियों से मिल कर बनी थी। निदेशक को अँग्रेजी कानून के अंतर्गत कारावास देने और अर्थदंड लगाने की अनुमति थी। हालांकि 1635 में इसके समकक्ष एक और कंपनी दि इण्डियन कम्पनी ट्रेडिंग टु दि ईस्ट इण्डीज़’ को शुरू किया गया था, जिससे इस कंपनी को तगड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा, लेकिन 1708 में दोनों कंपनियों में एक समझौता हो गया। वास्तव में यही कंपनी अब मूल रूप से ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
कंपनी का वर्चस्व :
1717 तक इस कंपनी के अधिकारों में यह तक वृद्धि हो गई कि कंपनी की हर जगह अपनी फौज, बन्दरगाह और गोदाम बनने लगे। कंपनी की फौज को हर उस व्यक्ति की जिंदगी में दखल देने का अधिकार था जो कंपनी से किसी भी रूप में जुड़ा था। चाहे वह कंपनी के कार्यालय में काम करने वाला चपरासी हो या कंपनी के बने हुए कपड़े, चाय या मसाले का प्रयोग करने वाला आम नागरिक हो। इस प्रकार इस इंडिया कंपनी ने आधी दुनिया की आबादी पर राज करना शुरू कर दिया था।
कंपनी के कार्यालय:
ईस्ट इंडिया कंपनी का एशिया के लगभग हर बड़े देश पर अधिकार था। कंपनी के पास सिंगापूर और पेनांग में बन्दरगाह थे जिनकी संख्या में भारत के कलकत्ता, गोवा, मुंबई और सूरत जैसी जगह भी जुड़ गई थीं। मुंबई, कोलकतता और चेन्नई राज्य तो इस कंपनी की ही देन है। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी विश्व की रोजगार देने वाली सबसे बड़ी कंपनी के रूप में प्रसिद्ध थी।
कंपनी के कार्यालय, गोदाम और मुख्यालय महलों को शर्मिंदा करने वाले होते थे। इनकी बनावट और सजावट में कंपनी के आधिपत्य वाले क्षेत्रो की मशहूर चीजें और प्रतीक रखे जाते थे।
ईस्टइंडिया कंपनी में कम करने वाले कर्मचारी नौकरी पाने के लिए ऊंची कीमत अदा करते थे। लेकिन कंपनी की वेतन के समब्न्ध में उदादवादी नीतियों के चलते कुछ ही समय में उससे कहीं ज्यादा आय वो कमा लेते थे। लंदन से बाहर काम करने वाले कर्मचारी तो दोतरफा आय कमाते थे। एक ओर कंपनी से वेतन लेते थे और दूसरी ओर कंपनी की ओर से उन्हें अपना निजी व्यापार करने की छूट होने के कारण उसका भी लाभ उठाते थे। इसी के साथ भ्रष्टाचार कंपनी की जड़ों में होने के कारण नज़राने वसूल करना तो इनका कानूनी हक होता था। भारतीय इतिहास में ऐसे कई प्रमाण मिलते हैं जहां राजाओं और मुगल सम्राटों ने कंपनी के अधिकारियों को नजरानों में किले और अशर्फ़ियाँ दी थीं।
भारत में कंपनी का प्रवेश और पतन:
भारत में इस कंपनी ने जहां एक ओर अपनी जड़ें जमा कर ब्रिटिश राज्य को जमने का मौका दिया वहीं इस कंपनी का विघटन भी भारत में ही हुआ था। 1608 में सूरत में हौकिंस नाम का अंग्रेज़ व्यापारी जहाँगीर के समक्ष महारानी एलीज़ाबेथ की मंजूरी से व्यापर के समक्ष उपस्थित हुआ था। यहाँ आकार होकिंस ने अपनी जड़ जमा चुके पुर्तगाली और फ्रांसीसी व्यापारियों को उखाड़ कर अपनी जगह मजबूत कर ली। होकिंस ने अपनी मदद के लिए ब्रिटेन के मशहूर कूटनीतिज्ञ थॉमस रे को बुलवाया और दोनों के विशेष रणनीति के तहत काम करना शुरू किया। इसके बाद भारत के विभिन्न राज्यों में कंपनी के कारखाने और उनकी सुरक्षा के नाम पर अपनी फौज रखनी शुरू कर दी। दूसरी ओर मुगल शासकों की विलासिता और आपस में फूट का फायदा उठाते हुए राजनीति में दखल शुरू किया। मराठे और मुगलों को जीतते हुए अंग्रेज़ आखिर में राजपूतों को भी हराने में सफल हुए और पूरा भारत अपने कब्जे में कर लिया।
इसके साथ ही सड़कों और रेल का विकास करके कंपनी ने पूरी तरह से भारतीय समाज में गहरे तक अपनी जगह बना ली। 1857 में हुई क्रांति को ईस्ट इंडिया कंपनी ने सफलतापूर्वक दबा तो दिया लेकिन इसके साथ ही ब्रिटेन की महारानी ने इस कंपनी के अधिकार अपने हाथ में लेकर अपना राज्य भारत में स्थापित कर दिया। इस प्रकार 200 साल पुरानी इस कंपनी का सूर्य अस्त हो गया।